Tuesday, December 27, 2016

मोदी ने कला को दिया सम्मान.राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अद्वैत गणनायक बने NGMA के महानिदेशक

अद्वैत गणनायक बने NGMA के महानिदेशक

अद्वैत गणनायक एक अद्भूत कलाकार हैं. वो कला को जीते हैं. कला को मह्सूस करते हैं. फिर कलाकृतियों को रचते हैं. और उसमें भारत की गौरवगाथाओं को उकेरते हैं. मोदी सरकार ने ऐसे मौलिक कलाकार को नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट यानी राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय के महानिदेशक नियुक्त किये हैं. उन्हें भारत की कला ज्ञान पर फक्र हैं. वो भारत की कला ज्ञान परंपराओं को एक दिशा देना चाहते हैं और उसके ज़रिये दुनियाँ में भारतीय कला को एक वजूद.  

लंदन विश्वविद्यालय के स्लैट स्कूल आफ फाइन आर्ट से मूर्ति कला में उच्च अध्ययन करने वाले अद्वैत गणनायक यूरोप के कई देशों में घूम-घूम कर स्कल्पचर बनाते रहे। लेकिन कलाकार मन उन्हें स्वदेश लौटा लाया। दिल्ली आए तो गांधी जी की दुनिया की पत्थर की सबसे बड़ी मूर्ति बनाने में जुट गए। राजघाट के गांधी संग्रहालय में यह मूर्ति स्थापित है। गांधी जी की दांडी मार्च की प्रतिमा बनाने के तीन साल के दौरान अद्दैत ने गाँधी जी पर खूब अध्य़यन किये और वो गाँधी जी को महसूस करने लगे थे. उस दौरान उन-उन जगहों पर गये जहाँ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गाँधी जी को अंग्रेजों ने जेल में रखा था. उनकी लंबाई, चौड़ाई, वजन,आँख, नाक आदि सारी चीजों का उन्होंने अध्ययन किया. और फिर उनकी मूर्ती बनायी. एक 56 किलो वजन का आदमी देश को नेतृत्व देते थे उस पहलू को उन्होंने अपने कला में दर्शाया.   

एक साधारण किसान परिवार में जन्में अद्धैत गणनायक अदभुत कलाकार हैं। उनकी कला में पश्चिम की नकल नहीं है। उनकी कला में भारतीयता और अपनी मिट्टी की खुशबू है। मुंबई के महाबल पहाड़ पर गीता के प्रमुख 18 श्लोकों पर आधारित उनका स्कल्पचर उनकी कला की गहरी समझ और उंचाइयों को व्याख्यायित करता है। अपनी पारंपरिक और समृद्द कला से उन्हें बेहद प्रेम और लगाव है। यही वजह है कि वे लंदन और दिल्ली छोड़ कर अपने जन्मभूमि उड़ीसा चले जाते हैं। वे कला को पैसा कमाने का जरिया भर नहीं मानते। वे कला को समाज की थाती मानते हैं। शायद इसी सोच की वजह से नब्बे के दशक के आखिर में उन्होंने “स्वदेशी आंदोलन के समर्थन” में अपनी कार की बलि दे दी थी। दिल्ली के शुरूआती दिनों में उनके पास एक पुरानी कंटेसा कार थी। जिसे उनकी चलाया करती थीं। एक दिन उन्होंने इस पर स्वदेशी के समर्थन में कुछ-कुछ पेंटिंग बना कर कार को “पोस्टर” बना दिया और लाकर साहित्य अकादमी के सामने खड़ा कर दिया। वर्षों यह कार “स्वदेशी” के इस्तहार के रूप में यहीं खड़ी रही। ऐसे तेवर वाले शालीन अद्दैत गणनायक अगर इस बार दिल्ली आए हैं तो महानिदेशक बनने के लिए नहीं, बल्कि इसलिए आए हैं कि उन्हें कला और कलाकारों के लिए कुछ करने का मौका मिल रहा है। वो कला कि मौलिकता पर जोर देते हैं. वे जितना बेहतरीन स्कल्पचर बनाते हैं, उतनी ही अच्छी पेंटिंग भी करते हैं। वे ब्रश की बजाए अंगुलियों से कैवनास पर चित्र उकेर देते हैं। उनकी अंगुलिया जितनी छीनी हथौड़ी की अभ्यस्त हैं उनती ही रंगो की भी। दिल्ली कालेज आफ आर्ट से मास्टर आफ फाइन आर्ट की पढ़ाई करने वाले अद्वैत को मूर्ति कला के लिए 1993 में भारत सरकार का राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है। यूरोप के करीब दर्जनभर देशों में अपनी मूर्ति कला का लोहा मनवाने वाला यह कलाकार बिल्कुल गंवई है। करीब पांच-छह साल वे दिल्ली रहे। लेकिन दिल्ली में भी उनका मन नहीं लगा। उडिया की मिट्टी से उनका गहरा लगाव उन्हें दिल्ली से भुवनेश्वर ले गया और एक दशक तक वह वहीं कला साधना करते रहे। गांव के गरीब बच्चों को कला सिखाते रहे। वे KIIT विश्वविद्यालय के स्कूल आफ फाइन आर्ट के डायरेक्टर भी रहे। वे ऐसे विरले प्रतिभावान भारतीय हैं जिन्हें कामनवेल्थ फेलोशिप पर लंदन के स्लैट स्कूल में पढ़ने का मौका मिला। यह फेलोशिप केवल एक भारतीय को मिला करती थी। दुनिया की इस प्रतिष्ठित फेलोशिप की खाशियत यह है कि इसमें पढाई के साथ-साथ परिवार के रहने-खाने आदि का भी खर्च मिलता है। यहां से पढ़ाई के बाद अद्धैत को अच्छा करियर बनाने के तमाम मौके मिले। लेकिन वे कभी पैसे के पीछे नहीं भागे। कला साधना में जुटे रहे। इतने बड़े कलाकार होने का कोई रोब-दाब और ग्लैमर नहीं। मंडी हाउस पर वे आज भी अपने देशी स्टाइल में चाय पीते हुए मिल जाएंगे। पैंट, कुर्ता, चप्पल, लंबी दाढ़ी और कंधे पर झोला देखर कोई भी दूर से उन्हें पहचान सकता है। 

Monday, December 12, 2016

पीएम मोदी के अभियान को साकार करती आईएएस बिटिया शरणदीप कौर

दिल्ली के विज्ञान भवन में सम्मानित होती आईएएस अधिकारी शरणदीप कौर
पीएम मोदी के स्वच्छता और बेटी बचाओ अभियान को साकार करती हरियाणा कि आईएएस बिटिया. शरणदीप कौर बराड़ 2009 बैच की सेकेंड आईएएस टॉपर हैं.सिरसा कि डीसी रहते हुए शरणदीप कौर बराड़ ने अपने केवल 11 महीनों के कार्यकाल में ही ग्रामीण सिरसा और उसके तीन शहरी कस्बों को खुले में शौच से मुक्त कराने में सफलता पाई. जिले के युवा कलेक्टर बराड़ ने इस अभियान में स्थानीय लोगों और सरपंचों को जागरुक किया और साथ लेकर स्वच्छता अभियान को गति दी. साथ ही हरियाणा जैसे राज्य जहाँ बेटियों के लिंगानुपात के आँकड़े उत्साहजनक नहीं है वहां बेटी बचाओ अभियान को एक नई दिशा दे रहीं हैं. शरणदीप खुद अपनी माता-पिता की इकलौती संतान हैं। उनके पिता मंजीत सिंह बराड़ एक सामान्य किसान और उनकी मां सुरजीत कौर एक रिटायर्ड टीचर हैं। किसान पिता ने उन्हें आईएएस बनाने का न सिर्फ सपना देखा बल्कि उसे साकार भी किया। बराड़ कहती हैं कि उनके माता-पिता का हौसला उनको यह प्रेरणा देता है कि बेटियां भी बुलंदियों को छू सकती हैं लेकिन उन्हें यह मौका मिले तब. इसलिये भी वो बेटी बचाओ अभियान को मुकाम तक ले जाना चाहती हैं. वो आईएएस अधिकारियों के बीच एक मिशाल के तौर पर उभरीं हैं. अंतरिक्ष हो या खेल के मैदानहरियाणा को अंतर्राष्ट्रीय पहचान बेटियों ने ही दिलाई हैगर्व की सबसे बड़ी वजह बेटियां ही हैं. मोदी के स्वच्छ भारत और बेटी बचाओ जैसे ड्रीम प्रोजेक्ट को साकार कर रही एक बेटी जो पेशे से जिला कलेक्टर है।   

एक नवंबर को हरियाणा के 50वें जन्मदिन पर गुरुग्राम में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हरियाणा के सात जिलों को बड़े फख्र से ‘खुले में शौच से मुक्त’ होने की घोषणा कर रहे थे। उस समय भी गुरुग्राम से लगभग 308 किलोमीटर दूर सुदूर राजस्थान से सटे हरियाणा के छोटे से कस्बे ऐलनाबाद को खुले में शौच से मुक्त करने के अपने मास्टर प्लान पर युवा और ऊर्जावान आईएएस अधिकारी (2009 बैच की सेकेंड टॉपर) शरणदीप कौर बराड़ माथापच्ची करने में जुटी थी। सिरसा के डीसी की कुर्सी पर काबिज बराड़ ने अपने 11 महीनों के कार्यकाल में ही ग्रामीण सिरसा और उसके तीन शहरी कस्बों को खुले में शौच से मुक्त कर भगीरथी प्रयास को अंजाम तो दिया ही है, हरियाणा के सबसे पिछड़े हुए इलाकों में से एक सिरसा को स्वच्छ भारत अभियान का अग्रणी ब्रैंड अम्बैसडर बना दिया है। कपास, किन्नु और गेहूं के उत्पादन के लिए मशहूर इस इलाके में मंडियों और फैक्ट्रियों को भी खुले में शौच से मुक्त करने के लिए सफलतापूर्वक प्रेरित किया गया है। आपको कॉटन जिनिंग फैक्ट्रियों के बाहर बजाप्ता ऐसे डिस्पले बोर्ड मिल जाएंगे जिसमें फैक्ट्री को उद्योगपतियों ने खुले में शौच से मुक्त घोषित किया है। यहां तक कि देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले प्रवासी मजदूरों के लिए भी शौचालयों की व्यवस्था की गई है। 17 सितंबर को मोदी के जन्मदिवस पर ही सिरसा जिले के 338 गांवों को हरियाणा सरकार ने खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया जिसके लिए इस ऊर्जावान आईएएस अधिकारी को दिल्ली के विज्ञान भवन में केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैय्या नायडू, ग्रामीण विकास मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की मौजूदगी में सम्मानित किया गया। आमतौर पर राष्ट्रीय मीडिया की नजरों से दूर रहने वाले और लगभग 13 लाख की आबादी वाले इस जिले के युवा कलेक्टर बराड़ कहती हैं कि ‘लोगों की जागरुकता और इसी साल हरियाणा में पढ़े-लिखे सरपंचों के चुने जाने के बाद से उन्हें स्वच्छता अभियान को गति देने में बेहद मदद मिली और जो शहरी इलाके इस अभियान से छूट गए हैं वहां मोबाइल टॉयलेट्स का इंतजाम कर जल्द ही खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया जाएगा’। 
बेटी बचाओ के मोर्चे पर भी सराहनीय सफलता
वो खामियां जिनसे बिगड़ती है हरियाणा की छवि, उनमें कोख में कत्ल यानि लिंगानुपात में कमी सबसे बड़ी खामी है। शायद यही वजह थी कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ अभियान की शुरुआत हरियाणा के पानीपत से ही की थी। हरियाणा के कई जिले ऐसे हैं जिनका लिंगानुपात बेहद शर्मनाक है। शरणदीप कौर बराड़ ने प्रधानमंत्री के इस ड्रीम प्रोजेक्ट को भी बेहद प्राथमिकता पर लिया और जिसका परिणाम यह है कि आज (अक्तूबर 2016 तक) सिरसा जिले का लिंगानुपात 1000 के मुकाबले 941 तक पहुंच चुका है। इस आंकड़े की तस्दीक चीफ मेडिकल ऑफिसर भी करते हैं। बेटी बचाओ के मुद्दे पर गंभीर काम करने की एक वजह शायद ये भी है कि शरणदीप खुद अपनी माता-पिता की इकलौती संतान हैं। उनके पिता मंजीत सिंह बराड़ एक सामान्य किसान और उनकी मां सुरजीत कौर एक रिटायर्ड टीचर हैं। किसान पिता ने उन्हें आईएएस बनाने का न सिर्फ सपना देखा बल्कि उसे साकार भी किया। बराड़ कहती हैं कि उनके माता-पिता का हौसला उनको यह प्रेरणा देता है कि बेटियां भी बुलंदियों को छू सकती हैं लेकिन उन्हें यह मौका तब मिलेगा जब उन्हें जन्म लेने का अधिकार दिया जाए। पीएनडीटी और लिंग परीक्षण के मोर्चे पर प्रशासन ने कड़े कदम उठाए और उसका परिणाम आज सामने है। लोकल इंटेलीजेंस यूनिट के अधिकारी अजय शर्मा सराहनीय प्रयासों का जिक्र करते हुए कहते हैं कि ‘लिंगानुपात को सुधारने के लिए उनकी टीम ने डाक्टरों की मदद से पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में पिछले दो सालों में 7 बड़े सीक्रेट ऑपरेशन्स को अंजाम दिए जहां पर कि मोटी रकम लेकर लिंग परीक्षण किया जा रहा था। चूंकि यह इलाका पंजाब और राजस्थान की सीमा से सटा है इसलिए हरियाणा में सख्ती के बाद लोग लिंग जांच के लिए पंजाब और राजस्थान का भी रुख कर लेते हैं’। 1000 लडक़ों के मुकाबले 941 के आंकड़े तक लिंगानुपात को पहुंचाना निश्चित तौर पर बड़ी उपलब्धि है। जिसे शरणदीप और उनकी टीम ने बिना ज्यादा शोर शराबे के अंजाम दिया है। मनोविज्ञान की छात्रा रही बराड़ लाइमलाइट से दूर ही रहना पसंद करती हैं लेकिन महज 11 महीनों में उनकी उपलब्धियों के मद्देनजर हरियाणा उनमें भविष्य का एक बेहतर प्रशासक और स्वपनदृष्टा देख रहा है।